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हनी ट्रैप: एक जैसे सोशल मीडिया अकॉउंट से सेलर्स को हनी ट्रैप कर रहा था ISI

नौसैनिक जासूसी रिंग मामले की जांच में पता चला है कि सेलर्स को हनी ट्रैप करने के लिए पाकिस्तान की जासूसी एजेंसी, इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (ISI) ने सोशल मीडिया अकाउंट्स के सेम सेट का इस्तेमाल  किया था। मामले की जांच कर रही राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने पाया कि नाविकों को काफी कम पैसे दिए गए थे। हालांकि एजेंसी को पता चला है कि कोई संवेदनशील जानकारी नहीं लीक हुई है। 

लेकिन यह पता लगाने की कोशिश की जा रही है कि कहीं विशाखापट्टनम के पूर्वी नौसेना कमान या मुंबई में पश्चिमी कमान के नौसैनिक जहाजों या पनडुब्बियों की कोई भी जानकारी आईएसआई के साथ साझा तो नहीं की गई। अधिकारियों ने कहा कि जांच के घेरे में आए अधिकांश कर्मचारी 2015 के बाद नौसेना में शामिल हो गए थे। अन्य संदिग्ध मामलों की भी जांच की जा रही है।

आंध्र प्रदेश पुलिस और केंद्रीय खुफिया एजेंसियों के संयुक्त अभियान में 20 दिसंबर को जासूसी रैकेट का भंडाफोड़ होने के बाद से 10 नाविकों को गिरफ्तार किया गया है। एनआईए को संदेह है कि निचले रैंकों में अधिक नौसेना के जवान हो सकते हैं, जो इस हनी ट्रैप में फंसे हुए थे।
एक अधिकारी ने जानकारी दी कि- ऐसा मालूम होता है कि पाकिस्तानी एजेंटों के रूप में काम करने वाली महिलाओं का एक विशेष समूह, जिनके किसी तीसरे देश में होने की सबसे अधिक संभावना है, इन नौसैनिकों के संपर्क में आने के लिए  फेसबुक और अन्य सोशल मीडिया खातों का उपयोग कर रही थी। एक बार जब वे कर्मियों के साथ दोस्ती कर लेती थी, तो उन्हें या तो ब्लैकमेल किया जाता था या कुछ स्वेच्छा से अपने काम व जॉब प्रोफाइल के बारे में डींग मारने लगते थे।
यह एजेंसी संयुक्त राज्य के विदेशी अधिकार क्षेत्र से जानकारी मांगने के लिए लेटर रोजेटरी या न्यायिक अनुरोध भेजने की प्रक्रिया में काम करती थी। अधिकारी ने कहा कि नाविकों को दिया गया धन बहुत बड़ा नहीं था। नौसेना कर्मियों को हवाला डीलर के माध्यम से 5,000 से 10,000 रुपये तक की छोटी राशि का भुगतान किया गया।

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